Thursday 16 July 2020

कितने ऋण लेकर संसार में आता है जीव, जाने कारण और समाधान

धर्म शास्त्रों में मनुष्य जाति पर जन्म से लेकर मृत्यु तक तीन प्रकार के ऋण बताए गए हैं। ऐसा बताया गया है कि, इन ऋणों को चुकाए बिना मनुष्य की मुक्ति संभव नहीं है। ऐसे ही ऋणों के बारे में कथा वाचक पंडित उमाशंकर ने विस्तार से बताया है।

देव ऋण
माना जाता है कि देव ऋण भगवान विष्णु का है। यह ऋण उत्तम चरित्र रखते हुए दान और यज्ञ करने से चुकता होता है। जो लोग धर्म का अपमान करते हैं या धर्म के बारे में भ्रम फैलाते या वेदों के विरुद्ध कार्य करते हैं, उनके ऊपर यह ऋण दुष्प्रभाव डालने वाला सिद्ध होता है।

खास उपाय : प्रतिदिन सुबह और शाम संध्यावंदन करें और भगवान विष्णु, श्रीकृष्ण और हनुमानजी में से किसी एक देवता के मंत्र, चालीसा, पाठ या स्तोत्र का जप करें। सिर पर चंदन का तिलक लगाएं। उत्तम और सात्विक भोजन करें। धर्म का प्रचार-प्रसार करें या धर्म के लिए दान करें। देवी-देवताओं आदि का सम्मान और उन्हें श्रद्धापूर्वक नमन करें। किसी भी प्रकार से न धर्म का अपमान सहें और न करें। हिन्दू हैं तो हिन्दू धर्म के अनुसार कर्म और स्वभाव का आचरण करें।
ऋषि ऋण
यह ऋण भगवान शंकर का है। वेद, उपनिषद और गीता पढ़कर उसके ज्ञान को सभी में बांटने से ही यह ऋण चुकता हो सकता है। जो व्यक्ति ऐसा नहीं करता है उससे भगवान शिव और ऋषिगण सदा अप्रसन्न ही रहते हैं। इससे व्यक्ति का जीवन घोर संकट में घिरता जाता है या मृत्यु के बाद उसे किसी भी प्रकार की मदद नहीं मिलती।


खास उपाय : इस ऋण को चुकाने के लिए व्यक्ति को प्रतिमाह गीता आदि शास्त्रों का पाठ करना चाहिए। सभी तरह की बुराइयों को समझकर उसे दूर करने का प्रयास करना चाहिए। अच्छे आचरण को अपनाना चाहिए। शरीर, मन और घर को जितना हो सके साफ और स्वच्छ रखना चाहिए।


पितृ ऋण
यह ऋण हमारे पूर्वजों का माना गया है। पितृ ऋण कई तरह का होता है। हमारे कर्मों का, आत्मा का, पिता का, भाई का, बहन का, मां का, पत्नी का, बेटी और बेटे का। स्वऋण या आत्म ऋण का अर्थ है कि जब जातक, पूर्व जन्म में नास्तिक और धर्म विरोधी काम करता है, तो अगले जन्म में, उस पर स्वऋण चढ़ता है। मातृ ऋण से कर्ज चढ़ता जाता है और घर की शांति भंग हो जाती है।


बहन के ऋण से व्यापार-नौकरी कभी भी स्थायी नहीं रहती। जीवन में संघर्ष इतना बढ़ जाता है कि जीने की इच्छा खत्म हो जाती है। भाई के ऋण से हर तरह की सफलता मिलने के बाद अचानक सब कुछ तबाह हो जाता है। 28 से 36 वर्ष की आयु के बीच तमाम तरह की तकलीफ झेलनी पड़ती है। इस ऋण के कई प्रकार हैं जो आगे विस्तार से बताए गए हैं।


खास उपाय : इस ऋण को उतारने के तीन उपाय- देश के धर्म अनुसार कुल परंपरा का पालन करना, पितृपक्ष में तर्पण और श्राद्ध करना और संतान उत्पन्न करके उसमें धार्मिक संस्कार डालना। प्रतिदिन हनुमान चालीसा पढ़ना, भृकुटी पर शुद्ध जल का तिलक लगाना, तेरस, चौदस, अमावस्या और पूर्णिमा के दिन गुड़-घी की धूप देना, घर के वास्तु को ठीक करना और शरीर के सभी छिद्रों को अच्छी रीति से प्रतिदिन साफ-सुधरा रखने से भी यह ऋण चुकता होता है।


1. पितृ ऋण : कुंडली में बृहस्पति (गुरु) अपने पक्के घर 2, 5, 9, 12 भावों से बाहर हो और बृहस्पति स्वयं 3,6,7,8,10 भाव में स्थित हो और बृहस्पति के पक्के घरों (2,5,9,12) में बुध या शुक्र या शनि या राहु या केतु बैठा हो, तो व्यक्ति पितृ ऋण से पीड़ित होता है। इसके अलावा पांचवें, नौवें या बारहवें भाव में जब शुक्र, बुध या राहु या फिर इनकी युति हो, तो जातक पर पितृ-ऋण ग्रस्त माना जाता है।


कारण : पितृ ऋण के कई कारण है। प्रारब्ध के कारण भी पितृ ऋण होता है। इसके अलावा तात्कालिक भी पितृ ऋष या दोष पैदा हो जाता है जैसे कि यदि आपने पास के मंदिर में तोड़ फोड़ हो, बढ़, पीपल, नीम, तुलसी सहित सात प्रमुख वृक्षों को काटा या कटवाया हो या पिता, दादा, नाना, कुल पुरोहित, पंडित आदि का अपमान किया हो।


समाधान : इस ऋण को कुछ लोग पितृदोष भी कहते हैं। इस दोष में सूर्य का उपाय करना चाहिए। इसके अलावा यह उपाय घर के सभी सदस्यों को मिलकर ही करना चाहिए। परिवार के सभी सदस्यों से बराबर धन एकत्रित करके किसी मंदिर में दान कर दें। किसी पीपल के वृक्ष को लगातार 43 दिन तक पानी अर्पित करें।

2.मातृ ऋण : जब कुंडली में चन्द्रमा द्वितीय एवं चतुर्थ भाव से बाहर कहीं भी स्थित हो तथा चतुर्थ भाव में केतु हो तो व्यक्ति मातृ-ऋण से पीड़ित रहता है। अर्थात चन्द्रमा विशेषतः 3,6,8,10,11,12 भावों में स्थित हो तो। इसके अलावा जब केतु कुंडली के चौथे भाव में बैठा हो तब भी मातृ ऋण माना जाता है।


कारण : जातक के कुल में किसी बड़े या पूर्वज ने विवाह या बच्चा होने के बाद अपनी मां को छोड़ दिया हो, नजरअन्दाज किया हो, मां के दुखी और उदास होने पर उसकी परवाह न की हो या मां को किसी भी रूप में दुखी किया हो। यह भी संकेत हो सकता है कि पास के कुंए या नदी की पूजा करने के बजाय उसमें गंदगी और कचरा डाला जा रहा होगा।


समाधान : इस में सर्वप्रथम मां की सेवा करना चाहिए। चंद्र का उपाय करना चाहिए। बहते पानी या नदी में एक चांदी का सिक्का बहाना चाहिए। माता दुर्गा से क्षमा मांगनी चाहिए। इसके अलाव अपने सभी रक्त (सगे) संबंधियों से बराबर-बराबर मात्रा में चांदी लेकर किसी नदी में बहाएं। यह काम एक ही दिन करना है।

3.स्त्री ऋण : जब शुक्र कुंडली के 3,4,5,6,9,10,11 भावों में स्थित हो तथा द्वितीय या सप्तम भाव में सूर्य, चन्द्र या राहु स्थित हो तो जातक स्त्री (पत्नी) के ऋण से ग्रस्त होता है। इसके अलावा सूर्य, चन्द्र या राहु या उनकी युति कुंडली के दूसरे अथवा सातवें भाव में हो, तो जातक स्त्री-ऋण से ग्रसित माना जाता है।


कारण : इसका कारण पूर्वजों द्वारा लोभ या विवाहेतर संबंधों के चलते पत्नी या परिवार की किसी स्त्री की हत्या की संभावना या किसी गर्भवती महिला को हानि पहुंचाना हो सकता है। इसका संकेत यह माना जा सकता है कि घर में ऐसे जानवर होंगे जो समूह में न रहते हों। पत्नी का मन दुखाने और उसका अपमान करने से यह ऋण निर्मित होता है जो व्यक्ति की बर्बादी का कारण भी बन जाता है।


समाधान : स्त्री या पत्नीं का सस्मान करना और उन्हें खुश रखना सीखें। रक्त संबंधियों से बराबर मात्रा में पैसे लेकर उसका चारा खरीदें और दिन के किसी समय पर 100 गायों को एक ही दिन में हरा चारा खिलाएं। चरित्र को उत्तम बनाए रखें और माता लक्ष्मी की पूजा करें। पांच शुक्रवार को व्रत उपवास रखें।

4.पुत्री-बहन का ऋण : जब कुंडली में बुध 1,4,5,8,9,10,11 भावों में स्थित हो तथा 3,6 भावों में चन्द्रमा या बुध हो तो व्यक्ति पुत्री और बहन के ऋण से ग्रस्त होता है। यह ऋण है तो नौकरी और व्यापार में व्यक्ति कभी तरक्की नहीं कर सकता और वह हमेशा चिंता से ही घिरा रहता है।


कारण : इसका कारण किसी की बहन या बेटी की हत्या या उन्हें परेशान करने की संभावना हो सकती है या फिर किसी अविवाहित स्त्री या बहन के साथ विश्वासघात किया हो। इसका संकेत यह हो सकता है कि खोए हुए बच्चों को बेचना या उससे लाभ कमाने का प्रयास किया गया हो।


समाधान : बहन को खुश रखने के उपाय पर विचार करें। बहन नहीं है तो बहन बनाएं और उसको हर तरह से सम्मानित करें। सारे परिजन पीले रंग की कौड़ियाँ लेकर एक जगह इकट्ठी करके जलाकर राख कर दें और उस राख को उसी दिन नदी में विसर्जित कर दें।


5.भाई का ऋण : लाल किताब के अनुसार जब बुध या शुक्र किसी कुंडली के पहले या आठवें भाव में स्थित हों, तो उस जातक को भ्रातृ-ऋण या संबंधी-ऋण का भागी माना जाता है। इसे इस तरह समझें- कुंडली में मंगल 2,4,5,6,9,11 एवं 12 भावों में स्थित हो तथा प्रथम व अष्टम भाव में बुध, केतु स्थित हो, तो व्यक्ति रिश्तेदारी के ऋण से ग्रस्त होता है।


कारण: किसी पूर्वज द्वारा किसी दोस्त या रिश्तेदार के खेत या घर में आग लगाना या फिर भाई या संबंधी के प्रति द्वेष का भाव हो सकता है। दूसरा कारण घर में बच्चे के जन्म या उत्सव विशेष के वक्त घर से दूर रहना भी हो सकता है।


समाधान : भाई और रिश्तेदारों से संबंध अच्‍छे बनाएं। सभी परिजनों से रकम इकट्ठी करके किसी हकीम या वैद्य को दान करें।

6.आत्म-ऋण : पांचवें भाव में जब शुक्र, शनि, राहु या केतु स्थित हों या इनमें से किसी की युति पंचम भाव में हो, तो जातक आत्म-ऋण का भागी माना जाता है।


कारण : इसका कारण पूर्वजों द्वारा परिवार के रीति-रिवाजों और परम्पराओं से अलग होना या परमात्मा में अविश्वास हो सकता है। इसका संकेत यह है कि घर के नीचे आग की भट्ठियां होंगी या छ्त में सूर्य की रोशनी आने के लिए बहुत सारे छेद होंगे।


समाधान : सभी संबंधियों के सहयोग से सूर्य यज्ञ का आयोजन करना चाहिए।

7.क्रूरता-ऋण : सूर्य, चन्द्रमा या मंगल या इनमें से किसी की युति कुंडली के दसवें या बारहवें भाव में हो, तो जातक को इस ऋण से ग्रसित माना जाता है।


कारण: इसका कारण किसी की जमीन या पुश्तैनी घर जबरन हड़पना या फिर मकान-मालिक को उसके मकान या भूमि का पैसा न देना हो सकता है।


समाधान: अलग-अलग जगह के सौ मजदूरों या मछलियों को सभी परिजन धन इकट्ठा करके एक दिन में भोजन कराएं।

8.अजात-ऋण या पैदा ही न हुए का ऋण : लाल किताब के मुताबिक जब सूर्य, शुक्र या मंगल या फिर इन ग्रहों की युति कुंडली के बारहवें भाव में हो, तो जातक इस ऋण का भागी कहलाता है।


कारण : इसका कारण ससुराल-पक्ष के लोगों के साथ छल या फिर किसी को धोखा देने पर उसके पूरे परिवार का बर्बाद हो जाना है।


समाधान : सभी परिजनों से एक-एक नारियल लेकर उन्हें एक जगह इकट्ठा करें और उसी दिन नदी में प्रवाहित कर दें। ससुराल पक्ष से संबंध अच्छे बनाए रखने से यह ऋण नहीं होता।


9.कुदरती ऋण : जब चन्द्रमा या मंगल कुंडली के छठे भाव में स्थित हों, तो जातक इस ऋण से ग्रसित माना जाता है।


कारण : इसका कारण किसी कुत्ते को मारना या भतीजे से इतना कपट करना कि वह पूरी तरह बर्बाद हो जाए।


समाधान : एक ही दिन में सौ कुत्तों को एक दिन में सभी परिजनों के सहयोग से दूध या खीर खिलानी चाहिए। ऐसा नहीं कर पाने की स्थिति में किसी विधवा की सेवा करके उससे आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। भैरव महाराज से क्षमा मांगना चाहिए।

10. जाति ऋण : जब कुंडली में 1,5,11 भावों को छोड़कर सूर्य कहीं भी स्थित हो तथा पंचम भाव में शुक्र, शनि, राहु या केतु स्थित हो, तो व्यक्ति जाति के ऋण से पीड़ित होता है।
इसका कोई भी स्पष्ट कारण या समाधान नही है।

11.जालिमाना ऋण: जब कुंडली में शनि 1,2,5,6,8,9,12 भावों में स्थिति हो तथा 10 या 11 भावों में सूर्य, चन्द्र और मंगल स्थित हो तो व्यक्ति जालिमाना ऋण से पीड़ित होता है।


कारण: आपके पूर्वजों या पितरों ने किसी से धोखा किया या उसे घर से बाहर निकाल दिया या उसे गुजारा नहीं दिया होगा। घर का मुख्य द्वार दक्षिण दिशा में होगा अथवा घर की जमीन किसी ऐसे व्यक्ति से ली गई होगी जिसके पुत्र न हो या घर किसी सड़क या कुएं के ऊपर निर्मित होगा।


समाधान: अलग-अलग जगह की सौ मछलियों को सभी परिजन धन इकट्ठा करके एक दिन में भोजन कराएं। इसका विकल्प यह है कि अलग अलग जगह के 10 मजदूरों को भोजन कराएं।

12.अजन्मे का ऋण : जब कुंडली में राहु 6,12,3 भावों के अतिरिक्त किसी भी भाव में हो या 12वें भाव में सूर्य, मंगल और शुक्र मौजूद हो या दोनों ही प्रकार की स्थिति हो, तो व्यक्ति अजन्मे के ऋण से ग्रस्त होता है।


कारण : आपके पूर्वजों ने ससुराल-पक्ष के लोगों को धोखा दिया या किसी रिश्तेदार के परिवार के विनाश में भूमिका निभाई होगी। संकेत यह भी हो सकता है कि दरवाजे के नीचे कोई गंदा नाला बह रहा होगा या कोई विनाशित श्मशान होगा अथवा घर की दक्षिणी दीवार से जुडी कोई भट्ठी होगी।


समाधान : सभी परिजनों से एक-एक नारियल लेकर उन्हें एक जगह इकट्ठा करें और उसी दिन नदी में प्रवाहित कर दें।

13.आध्यात्मिक ऋण : जब कुंडली में केतु 2,6,9 के अतिरिक्त किसी भी भाव में हो तथा छटे भाव में चन्द्रमा और मंगल स्थित हो तो ऐसे व्यक्ति पर आध्यात्मिक ऋण होता है।


कारण : स्पष्ट नहीं।

समाधान :स्पष्ट नहीं।

14.संबंधी ऋण : लाल किताब के अनुसार जब बुध और केतु कुंडली के पहले अथवा आठवें भाव में हो, तो संबंधी ऋण से ग्रसित माना जाता है।


कारण: हो सकता है कि आपके पूर्वजों ने किसी की फसल या घर में आग लगाई हो, किसी को जहर दिया हो अथवा किसी की गर्भवती भैंस को मार डाला हो। इसका संकेत यह भी हो सकता है कि घर में किसी बच्चे के जन्मदिन, त्योहारों या अन्य उत्सवों के समय अपने परिवार से दूर रहना अथवा रिश्तेदारों से न मिलना।


समाधान : अपने सभी रक्त संबंधियों से बराबर मात्रा में पैसे लेकर उसे दूसरों की मदद के लिए किसी चिकित्सक को दें या उससे दवाएं खरीद कर धर्मार्थ संस्थाओं को दें।