Friday 19 June 2020

देवशयनी या पद्मा एकादशी व्रत पर क्या करे और क्या नहीं


Devshayani ekadashi par kya kare हिंदू धर्म में हर एक चीज का अपना अलग ही महत्व होता है। जैसे कि हर महीने में एक ना एक एकादशी तो आती ही रहती है। एकादशी के दिन महिलाएं व्रत और पूजा पाठ भी करती है। इन पूजा पाठ का अपना अलग ही मतलब होता है।

जो भी स्त्री या पुरुष एकादशी के व्रत को विधिवत पूर्वक करता है। तो उसे सुख समृद्धि और शांति प्राप्त होती है। तो चलिए, आज हम आपको इसी एकादशी के अलग स्वरुप। यानि देवशयनी एकादशी के बारे में विस्तार से बताएंगे:

देखा जाए, तो हर साल 24 एकादशी आती है। जिसमें से भी अधिमास या मलमास आता है। तो इनकी संख्या बढ़ कर के 26 हो जाती है। जो एकादशी आषाढ मास के शुक्ल पक्ष आती है। उसे देवशयनी एकादशी कहा जाता है। कहीं जगह पर लोग इस तिथि को पद्मा नाभा भी कहते हैं।
बताया जाता है कि इस दिन सूर्य के मिथुन राशि मैं आने पर है एकादशी आती है। इस दिन से ही चातुर्मास शुरू होना माना जाता है। इस दिन से भगवान श्री हरि विष्णु क्षीर सागर में शयन करते हैं। लगभग 4 माह बाद तुला राशि में सूर्य के जाने पर उन्हें उठाया जाता है। वो दिन को देवोत्थानी एकादशी भी कहा जाता है। इसके बीच के अंतराल को ही चातुर्मास बताया गया है।

धार्मिक शास्त्रों की माने तो आषाढ़ शुक्ल पक्ष में एकादशी तिथि के दिन शंखासुर देत्य को मारा गया था। उसी दिन से शुरुआत के भगवान हरि चार मास तक क्षीर समुद्र में शयन करते हैं। फिर भगवान को कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन जगाया जाता है।
पुराणों की माने तो भगवान ने पहले पेर में पूरी पृथ्वी, आकाश और सभी दिशाओ को धक लिया है। उसके अगले पेअर में संपूर्ण स्वर्ग लोक को ले लिया है। जबकि तीसरे पैर में बली ने अपने आपको समकक्ष करते हुए। आखिर पैर को अपने सिर पर रखने को कहा। इस प्रकार के दान से भगवान हरि प्रसन्न होकर पाताल लोक का आधिपत्य उसे बना दिया और कहा वर मांगो। बली द्वारा वर मांगते हुए यह कहा गया कि भगवान आप मेरे महल में नित्य रहे। बली के बंधन में हरी को बंधा देख कर हरि की भार्या लक्ष्मी ने बली को भाई बना लिया। भगवान से बली को वचन से मुक्त करने का अनुरोध किया। बस उसी दिन से भगवान विष्णु जी द्वारा वचनो का पालन करते हुए, तीनों देवता 4-4 माह सुतल में निवास करते हैं। विष्णु जी देवशयनी एकादशी से देव उठनी एकादशी तक, भगवान शिव महा शिवरात्रि तक और श्री ब्रहमा शिवरात्रि से दैवशयनि एकादशी तक निवास करते हैं।

Devshayani ekadashi par kya kare यदि आप देवशयनी एकादशी का व्रत कर रही है। तो इसे विधि पूर्वक करें जिसके लिए
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देह की शुद्धि या सुंदरता के लिए पंच गव्य।
वंश वृद्धि के लिए नियमित दूध।
सर्वपापक्षयपूर्वक सकल पुण्य फल प्राप्त करने के लिए एकमुक्त, नकतव्रत, अयाचित भोजन या सर्वथा उपवास करने का व्रत करें।
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यह उस समय की बात है, जब देव ऋषि नारद जी ने ब्रहमा जी से शइन एकादशी के विषय में जानने की उत्सुकता दिखाई थी। तब ब्रहमा जी द्वारा है बताया गया कि सद्गुरु में मांधाता नाम का एक चक्रवर्ती सम्राट राजा राज करते थे। उनके राज्य में प्रजा काफी सुख और शांति से रह रहीं थी। लेकिन भविष्य में क्या हो जाए, इसके बारे में कोई भी नहीं जानता है। अतः सब इस बात से अनजान थे कि उनके राज्य में शीघ्र ही भयंकर अकाल पड़ने वाला है।
उनके राज्य में पूरे 3 वर्ष तक बारिश ना होने के कारण भयंकर अकाल पड़ा। इस अकाल के चलते चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। धर्म पक्ष के चलते लोगों ने यज्ञ, हवन, पिंडदान, कथा, व्रत अदि में भी कोई कमी नहीं रखी। लेकिन जब मुसीबत पड़ी हो, तो धार्मिक कार्यों में प्राणी की रूचि कहां तक रह जाती है। पूरी प्रजा में राजा के पास जाकर अपनी वेदना से दुखी होकर गुहार लगाई।
ऐसी परिस्थिति में राजा जानकर बहुत दुखी हुए। मैं सोचने लगे कि आखिर उन्होंने ऐसा कौन सा अपराध कर दिया है। जिसका दंड उन्हें इस स्वरुप में मिल रहा है। फिर इस कष्ट से मुक्ति पाने का कोई साधन करने के उद्देश्य से राजा अपनी सेना को लेकर जंगल की ओर चल दिए। वहां पर विचरण करते हुए। एक दिन वह ब्रह्मा जी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचे राजा ने महत्मा को साक्षात दंडवत प्रणाम भी किया। ऋषि द्वारा आशीर्वाद देने के बाद राजा से उनकी कुशलता के बारे में पूछा। फिर जंगल में घूमते हुए वह अपने आश्रम में आने का कारण ऋषि वर को बताया।
तब राजा द्वारा हाथ जोड़कर ऋषि से प्राथना गई सभी प्रकार से धर्म का पालन करता हुआ। मैं अपने राज्य का दुभिरक्ष भविष्य देख रहा हूं। आखिर किस कारण से ऐसा हो रहा है। कृपया करके आप इसका समाधान करें। यह सुनकर महर्षि अंगिरा ने राजा को कहा सब युगों से उत्तम यह सतयुग है। इसमें छोटे से पाप का भी बड़ा भयंकर दंड मिलता है।
इसलिए है राजन! इसमें धर्म अपने चारों चरणों में व्याप्त रहता है। ब्राह्मण के अतिरिक्त किसी अन्य जाति को तप करने का अधिकार नहीं है। जबकि आपके राज्य में एक शूद्र तपस्या कर रहा है। यह कारण है कि आपके राज्य में वर्षा नहीं हो रही है। जब तक वह अकाल को प्राप्त नहीं होगा। तब तक यहां बुरी दशा शांत नहीं होगी। दुभिरक्ष की शांति उसे मारने से ही संभव हो पाएगी।
लेकिन राजा अपराध स्वरुप शूद्र तपस्वी का शमन यानी मारने को तैयार नहीं हुआ। उन्होंने कहा देव मैं उस नीर अपराध को कैसे मार दूं? यह बात मेरे मन को स्वीकार नहीं हो रही है। कृपया करके आप कोई अन्य उपाय बताएं। महर्षि अंगिरा ने फिर कहा, "आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करें।"
इस व्रत के प्रभाव से अवश्य ही वर्षा होगी।
महर्षि की बात सुनकर राजा ने राज्य की राजधानी वापस लौट आएं। उन्होंने चारों वर्णों सहित पदमा एकादशी का विधि पूर्वक व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उनके राज्य में काफी मुसलाधार बारिश हुई। जिससे अकाल खत्म हो पूरा राज्य धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया।
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Devshayani ekadashi par kya kare हमारे ब्रह्म वैवर्त पुराण में देवशयनी एकादशी के विशेष महात्म्य का वर्णन बताया गया है। जिसके अनुसार इस व्रत से प्राणी की समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है। व्रत करने वाले के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। यदि व्रत करने वाला चातुर्मास के नियमों का पालन विधि पूर्वक करता है। तो उसे महाफल की प्राप्ति भी होती है।