Tuesday 30 June 2020

आखिर क्यों श्रीकृष्ण के बुलाने पर नहीं आए हनुमान जी, जानिए ये कथा


सभी जानते हैं कि भगवान श्रीराम जी के परम भक्त थे हनुमान जी। माता सीता को ढ़ूंढने में हनुमान जी ने श्रीराम जी की हर स्थिति में मदद की। रामायण काल में भगवान श्रीराम और परम भक्त हनुमान जी के जीवन से जुड़े हर एक तथ्य के बारे में आपने सुना होगा। लेकिन क्या आपने द्वारकाधीश और हनुमान जी के जीवन से जुड़ी कथा के बारे में सुना नहीं तो लिए जानते हैं-
एक बार भगवान श्री कृष्ण अपनी पत्नि सत्यभामा के साथ अपने भवन में बैठे थे। उस दिन उनको अपने राम अवतार का स्मरण हो आया और उन्होंने सोचा मेरा प्रिय भक्त हनुमान भी अभी धरती पर ही है और मैंने फिर से जन्म ले लिया फिर भी वह मुझसे मिलने क्यों नहीं आया। उसके बाद उन्होंने सोचा शायद हनुमानजी मेरी आज्ञा की प्रतीक्षा कर रहे होंगे।
जिसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने पक्षीराज गरुड़ को यह आदेश दिया कि वह जाकर हनुमानजी को द्वारका आने का संदेश दे आए। श्रीकृष्ण की आज्ञा प्राप्त करके गरुड़जी हनुमानजी को संदेश देने निकल पड़े। कुछ ही समय में गरुड़जी हनुमानजी के पास पहुंच गए। हनुमानजी वहां पर भगवान श्रीराम का ध्यान कर रहे थे।
पक्षीराज गरुड़ ने हनुमानजी को भगवान श्रीकृष्ण का आदेश सुनाया कि आप को द्वारकानाथ भगवान श्रीकृष्ण ने स्मरण किया है, आप तुरंत ही द्वारका के लिए प्रस्थान करें। उस समय हनुमानजी ने गरुड़ की बात सुनकर इंकार कर दिया कि मे किसी द्वारकानाथ का आदेश नहीं मानूंगा। इसलिए तुम यहां से चले जाओ।
हनुमानजी की बात सुनकर गरुड़ को गुस्सा आ गया। गरुड़ को लगा हनुमानजी ने श्रीकृष्ण भगवान का अपमान किया है। उसके बाद गरुड़जी वहां से श्रीकृष्ण के पास चले गए और श्रीकृष्ण से कहा प्रभु हनुमानजी ने आप का आदेश मानने से इनकार कर दिया है।
यह सुनकर भगवान श्रीकृष्ण ने मुस्कराते हुए कहा है पक्षीराज भूल हनुमानजी की नहीं हमारी है। हनुमानजी तो मेरे राम स्वरूप के अनन्य भक्त है। वह श्रीराम के सिवा किसी और का आदेश नहीं मानेंगे। तुम अब वापस उनके पास जाओ और इस बार उनसे यह कहो कि भगवान राम ने उन्हें द्वारका आने का आदेश दिया है।
भगवान श्रीकृष्ण की बात सुनकर गरुड़जी वापस हनुमानजी के पास चले गए और उन्हें यह आदेश सुनाया कि भगवान राम इस समय द्वारका में है और आप को वहां पर आने के लिए कहा है। यह सुनकर हनुमानजी का मन प्रसन्न हो गया और उनकी आखों से आंसू आ गए। यह सुनकर वह तुरंत ही द्वारका के लिए निकल पड़े। उस समय उनकी गति इतनी थी कि गरुड़ भी उनकी बराबरी नहीं कर सके और गरुड़जी के मन में जो अपनी गति का अभिमान था वह भी टूट गया।