Wednesday 22 April 2020

पार्थिव पटेल का छलका दर्द, बताया कब हुए थे अपने करियर में सबसे ज्यादा निराश


नई दिल्ली। विकेकीटपर पार्थिव पटेल ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्होंने अपने छोटे कद के बावजूद विकेट के पीछे जबरदस्त भूमिका निभाकर पहचान बनाई। हालांकि इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि महेंद्र सिंह धोनी के टीम में पैर जमने के बाद पार्थिव का प्लेइंग इलेवन से पत्ता कटा। यही चीज देख पार्थिव ने महसूस किया है कि उन्हें दूसरे विकेटकीपर के रूप में टीम में जगह दी जानी चाहिए थी। पार्थिव ने बताया कि इनके करियर में काैन सा वो लम्हा था जब वो सबसे ज्यादा निराश हुए थे।

जगह ना मिलने पर हुए थे निराश
पार्थिव ने इंस्टाग्राम पर आरपी सिंह के साथ लाइव होते हुए कहा कि जब उन्हें 2007-08 के ऑस्ट्रेलियाई दौरे के लिए भारतीय टीम में शामिल नहीं किया गया था तो बहुत निराशा हुई थी। उन्होंने कहा, ''सही समय पर सही जगह पर होना महत्वपूर्ण होता है। विकेटकीपर के रूप में धोनी की जगह पक्की थी। लेकिन मैं दूसरे विकेटकीपर के रूप में टीम में चुने जाने का दावेदार था, लेकिन मुझे नहीं चुना गया।

तब सीरीज भी हारे थे
इस खिलाड़ी ने आगे कहा, ''मुझे टीम में नहीं चुने जाने की वजह से निराशा हुई थी। चयन समिति प्रमुख दिलीप वेंगसरकर ने मुझे फोन कर कहा कि मैं अच्छा प्रदर्शन कर रहा हूं और मुझे इसे जारी रखना चाहिए। उन्होंने मुझे सूचित किया कि मुझे टीम में नहीं चुना गया है। गाैर हो कि 2007-08 की इस चार मैचों की सीरीज में ऑस्ट्रेलिया ने भारत को 2-1 से हराया था लेकिन सीरीज बेहद रोमांचक रही थी। इसी सीरीज के सिडनी में हुए दूसरे टेस्ट मैच के दौरान हरभजन सिंह और एंड्रयू साइमंड्स के बीच विवाद हुआ था और यह टेस्ट मंकीगेट टेस्ट के रूप में जाना जाता है।

धोनी इसलिए थे पहली पसंद

पार्थिव पटेल ने कहा, ''उस समय देश के सभी विकेटकीपर जानते थे कि वे टीम में पहली पसंद के विकेटकीपर के रूप में नहीं चुने जाएंगे क्योंकि धोनी टीम के कप्तान भी थे। इसी के चलते अन्य विकेटकीपर्स के बीच दूसरे स्थान के लिए टक्कर होती थी।'' पार्थिव ने 2002 में इंग्लैंड के खिलाफ ट्रेंटब्रिज में इंटरनेशनल डेब्यू किया था। वे उस समय सबसे युवा विकेटकीपर थे। उन्होंने 17 साल 153 दिन की उम्र में डेब्यू किया था। उन्होंने 25 टेस्ट और 38 इंटरनेशनल वनडे मैच भारत के लिए खेले हैं।