Saturday 28 March 2020

दुनिया में कोरोना के खिलाफ मलेरिया की दवाइयों को इतनी अहमियत क्यों?


नई दिल्ली : कोरोना वायरस (Corona Virus) से लड़ने के लिए दुनिया में हर तरह के प्रयास किए जा रहे हैं. डॉक्टर, शोधकर्ता और वैज्ञानिक इसके इलाज के तरीके ढूंढने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं. इसके लिए पिछले कुछ समय से मलेरिया (Malaria) की दवाइयों से इलाज ढूंढने की बात चल रही है. ऐसे में सवाल है कि आखिर कोरोना के खिलाफ मलेरिया की दवाइयों को इतनी तवज्जो क्यों दी जा रही है.

शोध जारी है लेकिन..कोरोना वायरस के मद्देनजर अमेरिका सहित दुनिया के कई शोधकर्ता पुरानी मलेरिया की दवाइयों पर शोध कर रहे हैं. कई मामलों में तो इन दवाओं का प्रयोग उपचार और संक्रमण को रोकने के लिए भी किया गया है. जबकि अभी तक इन दवाओं की कोरोना वायरस के खिलाफ कारगरता के बारे में किसी भी तरह की पुष्टि नहीं हुई है.

जिन देशों में इन दवाओं पर शोध हो रहा है उनमें अमेरिका सहित चीन और फ्रांस जैसे देश भी शामिल हैं. अभी यह देखा जा रहा है कि क्या क्लोरोक्वाइन और हाइड्रॉक्‍सीक्‍लोरोक्विन जैसी दवाओं का कोरोना वायरस के कारण फैल रही कोविड-19 बीमारी के उपचार में किसी भी तरह की कोई भूमिका हो सकती है.


शोध को ऐसे भी मिली हवादरअसल इस शोध को ज्यादा हवा तब मिली जब अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने मलेरिया की दवाइयों को गेम चेंजर कह दिया था. लेकिन अमेरिका के ही फूड एंड ड्रग एडमिस्ट्रेशन (FDA) और अन्य विशेषज्ञों ने कहा कि पहले जांचों में यह सुनिश्चित करना होगा कि ये दवाइयां आम मरीजों के लिए कितनी असरदार और सुरक्षित हैं.

मलेरिया की ही दवाइयां क्यों
ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर मलेरिया की दवाइयों में ऐसा क्या खास है जो इन्हें इतनी तवज्जो दी जा रही है. अमेरिका में अभी ऐसी किसी भी टीके या दवा को कोविड-19 के लिए मान्यता नहीं मिली है. जबकि अमेरिका में ही इस बीमारी से संक्रमित लोगों की संख्या तेजी से बढ़ते हुए चीन से ज्यादा हो गई है. वहीं मरने वालों की संख्या 1,000 से ज्यादा बताई जा रही है. जबकि दुनिया में 5 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित और 23 हजार से ज्यादा लोग मर चुके हैं.



इन हालातों में अमेरिका की सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) ने अपने वेबसाइट पर कहा है कि कुछ अमरीकी क्लीनिक ने हाइड्रॉक्‍सीक्‍लोरोक्विन के अलग-अगल डोजों वाले प्रयोग किए हैं.

क्या हैं ये दवाइयांक्लोरोक्वाइन क्वविनाइन का सिंथेटिक रूप है जो सिकोना पौधे की छाल से मिलता है. वह दक्षिण अमेरिका में बुखार की दवाई के रूप में इस्तेमाल होती है. क्लोरोक्वाइन पहली बार 1930 में सिंथेटिक रूप में बनी थी. इसका एक और रूप हाइड्रॉक्‍सीक्‍लोरोक्विन 1950 में पहले सामने आया था. इसे कम टॉक्सिक माना जाता है. लेकिन दोनों ही दवाइयों के गंभीर साइड इफेक्ट्स माने जाते हैं जिसमें देखने में कमजोरी, हृदय संबंधी समस्याएं होती हैं यहां तक किय दवाई अगर गलत तरीके से ले ली तो मौत भी हो सकती है.



ये दवाइयां मलेरिया के लिए भी ली जाती हैं जो कि मच्छर के काटने के बाद एक परजीवी के द्वारा फैलने से होती है. क्योंकि ये दवाइयां इस परजीवी की मरीज के खून के सेल को पचाने की क्षमता में बाधा डालती हैं.

वायरल संक्रमण में कारगर हो सकती हैंक्लोरोक्वाइन को लेकर वैज्ञानिकों के गहन शोध बताते हैं कि वह वायरल संक्रमण में कारगर हो सकती हैं. वे वायरस को अपनी संख्या बढ़ाने में बाधा पहुंचाने और पेट में जलन की समस्या को कम करने में सहायक हो सकती है. वहीं हाइड्रॉक्‍सीक्‍लोरोक्विन मलेरिया के अलावा ल्यूपस और कुछ गठिया जैसे रोगों में भी सहायक होती है.

तो समस्या क्या हैसमस्या यह है कि कोरोना वायरस के मामले में अभी इन दवाओं के आंकड़े बहुत ही शुरुआती हैं और वे भी स्पष्ट या निर्णायक नहीं हैं. जैसे एक फ्रांस में काम रही टीम ने बताया कि उन्होंने जिन मरीजों पर हाइड्रॉक्‍सीक्‍लोरोक्विन दवा का ट्रायल किया उनमें से 25 प्रतिशत में छह दिन बाद भी कोरोना के लक्षण पाए गए. यह एक छोटा से ट्रायल था इसलिए इसके और नतीजों की जरूरत होगी.

समस्या यह है कि इस तरह के सभी ट्रायल छोटे स्तर पर और स्थानीय हैं इसलिए इन्हें सुनिश्चित, प्रभावी और सुरक्षित उपचार नहीं माना जा सकता. जहां चीन में विरोधाभासी परिणाम दिखे हैं तो अब ब्रिटेन भी इस मामले में ट्रायल्स शुरू करने जा रहा है.

अमेरिका के न्यूयार्क में जहां बहुत ज्यादा संख्या में नए मामले सामने आए हैं वहां बड़े पैमाने पर इन दवाइयों का ट्रायल हो रहा है. अमेरिका में इन दवाइयों की कमी हो गई है. तो दवाई बनाने वाली कंपनियों ने इनका उत्पादन बढ़ा दिया है.
Article Source: Dailyhunt