Sunday 15 December 2019

आज की 4G मोबाईल क्या सही में हमारे आस पास के खूबसूरत और नन्हे पक्षियों के लिए घातक है

पक्षियों के ऊपर अध्यन करने वाले डॉक्टर और वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है की मोबाईल टेक्नोलॉजी और पक्षियों से जुडी बाते जो रजनी कांत की फ़िल्म 2.0 में दिखाई गई थी वो काफी हद तक सही है,और रेडिएशन की वजह से पक्षियों की प्रजनन क्षमता, अंडों के आकार, अंडों के छिलके की मोटाई पर भी फ़र्क़ पड़ता है।

विदेशों में तो मोबाइल टावर के पक्षियों पर होने वाले बुरे असर को लेकर कई शोध हुए हैं लेकिन भारत में ऐसे रिसर्च की बहुत ज्यादा ज़रूरत है ताकि पुख्ता तौर पर पता लगाया जा सके कि सच में मोबाइल टावर से ऐसे नुक़सान हो रहे हैं।



अमूमन पक्षी दो तरह के होते हैं- पहले वह जो हमारे आसपास रहते हैं और दूसरे वह जो मौसम के हिसाब से बाहर से आते हैं. बाहर से आने वाले पक्षियों को "माइग्रेटरी बर्ड्स" यानी प्रवासी पक्षी कहा जाता है.जो दूसरे देशों से मीलों का सफर तय करके पहुंचते हैं. वो धरती के चुंबकीय क्षेत्र की मदद से अपना रास्ता याद रखते है, उनका ख़ुद का नेविगेशन सिस्टम होता है. लेकिन जब वो मोबाइल टावर से निकलने वाली इलेक्ट्रोमेग्नेटिक फील्ड रेडिएशन के संपर्क में आते हैं तो भ्रमित हो जाते हैं और गलत जगह पहुंच जाते है।



भारत के पर्यावरण मंत्रालय ने कुछ साल पहले इस पर काम करने के लिए एक समिति बनाई थी, जिसे पक्षियों और मधुमक्खियों समेत वन्यजीवों पर मोबाइल टावर से होने वाले असर को पता लगाने का काम सौंपा गया था.समिति की रिपोर्ट में पाया गया कि भारत सेलफ़ोन का सबसे बड़ा बाज़ार है।


परन्तु मोबाईल टावर लगाने की की लोकेशन को लेकर कोई नीति या कानून नहीं है.समिति ने 30 अध्ययनों में से 23 में पाया गया कि "इलेक्ट्रोमेग्नेटिक फील्ड रेडिएशन" का पक्षियों पर बुरा असर होता है. भारत के ही "डॉ आरके सिंह" की रिसर्च में दावा किया कि रेडिएशन के असर का जो जिक्र फिल्म 2.0 में दिखाई गई चीज़ें सही हैं।



भारत सरकार इंसानो, जानवरों और पक्षियों की सेहत को लेकर बीते कई सालों से मोबाइल सर्विस ऑपरेटरों पर सख्ती कर रही है, लेकिन इससे मोबाइल फोन यूज़र्स को ख़राब नेटवर्क और कॉल ड्राप की समस्याएं भी झेलनी पड़ रही हैं।