देखिए अलग मुकाम का तो नहीं पता पर हां एक निर्देशक ऐसा है जिसे मैं उसकी पहली फिल्म से फॉलो कर रहा हूं और उसकी हर फिल्म एक से बढ़कर एक होती है और सबसे बड़ी बात उस बंदे की फिल्में अपने कंटेंट की वजह से पॉपुलर होती हैं ऊपर से कंटेंट भी एकदम ओरिजनल.
उस निर्देशक का नाम है श्रीराम राघवन.
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दोस्तों अगर आप को श्रीराम राघवन के बारे में पूरी जानकारी नहीं है तो बता दूं कि सन् 2004 में उर्मिला मातोंडकर और सैफ अली खान की फिल्म एक हसीना थी से बतौर निर्देशक कॅरियर की शुरुआत करने के बावजूद इन्होंने अभी तक सिर्फ 5 फिल्में ही निर्देशित कीं हैं और सब एक से बढ़कर एक इन फिल्मों के नाम हैं एक हसीना थी, जॉनी गद्दार, एजेंट विनोद, बदलापुर और अंधाधुन. अब सोचिए इन फिल्मों में सबसे कमजोर फिल्म एजेंट विनोद है जो देखा जाए तो भारतीय जेम्स बॉन्ड की कहानी है ऊपर से फिल्म भी बेहतरीन थी. पर शायद यह इंटरनेशनल टाइप का मैटेरियल भारतीयों को समझ नहीं आया.
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सस्पेंस थ्रिलर फिल्मों में महारत रखने वाले इस निर्देशक की जगह कोई और होता तो दासियों फिल्में बना चुका होता पर जब तक कोई अच्छी और जबरदस्त कहानी इन्हें नहीं मिलती ये फिल्म बनाना पसंद नहीं करते. सारी की सारी फिल्मों ने उनमें काम करने वाले अभिनेताओं को भी बतौर अभिनेता एक नई पहचान दी. याद करिए 'एक हसीना थी' से पहले सैफ को सिर्फ लवरब्वाय टाइप के रोल मिलते थे ऐसे में इस फिल्म ने उन्हें वर्सेटाइल अभिनेता के तौर पर पेश किया, साथ ही उर्मिला के भी कॅरियर का सबसे सशक्त रोल माना जाता है.
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जॉनी गद्दार की तो कहानी ही अलहदा थी. इससे कॅरियर शुरू करने वाले नील नितिन मुकेश आज भी उस सफलता के लिए तरस रहे हैं जो उन्हें पहली फिल्म से मिली.
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सैफ की तरह ही वरुण धवन को भी बदलापुर से पहले सीरियस रोल्स में लोग सोच भी नहीं सकते थे पर बदलापुर ने उनके अभिनय के समीकरण ही बदल दिए.
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श्रीराम राघवन की अंतिम फिल्म अंधाधुन के बारे में शायद ही मुझे कुछ कहने की आवश्यकता है. हाल फिलहाल की सबसे बेहतरीन सस्पेंस फिल्मों में से एक अंधाधुन की तारीफ के लिए शब्द कम हैं. आयुष्मान खुराना ने अपने कॅरियर की सबसे बेहतरीन भूमिका इस फिल्म में निभाई है और संग में तब्बू जैसी मंझी हुई अदाकारा.